HISTORY OF JHALAWAR

                                      हमारा झालावाड़ 

प्राकृतिक सौंदर्य एवं खनिज संपदा से भरपूर विंध्याचल पर्वत माला से घिरा हुआ झालावाड़  (Jhalawar) जिला राजस्थान (Rajasthan) के दक्षिण पूर्वी कोने पर मालवा के पठार के किनारे स्थित है. राजस्थान के इतिहास में झालावाड़ जिले का एक अहम स्थान रहा है| संतरा (Oranges) उत्पादन में देश का छोटा नागपुर (Nagpur), कोटा स्टोन "र सैंड स्टोन पत्थर के लिए पूरे विश्व में जाने जाने वाला झालावाड़ जिले का इतिहास समृद्ध रहा है| यद्यपि  झालावाड़ राज्य का क्रमबद्ध इतिहास उपलब्ध नहीं है, लेकिन 1780 ईस्वी में झाला जालिम सिंह ने कोटा राज्य के फौजदार व सेनापति के रूप में झालावाड़ राज्य की स्थापना की थी, इस राज्य का निर्माण 8 अप्रैल 1838 को अंग्रेजों के साथ हुई एक संधि के परिणाम स्वरूप हुआ| इससे पूर्व झालावाड़ कोटा रियासत का एक हिस्सा था "र कुछ हिस्सा मालवा के अधीन था| इसीलिए झालावाड़ राज्य का पूर्ण इतिहास कोटा राज्य "र मध्यप्रदेश के मालवा से भी जुड़ा हुआ है. जिसका असर जिले की कला संस्कृति व खानपान पर भी देखा जा सकता है|

                                  राजस्थान के चेरापूंजी के नाम से विख्यात झालावाड़ जिले को पूरे प्रदेश में सबसे ज्यादा बारिश वाले जिले में भी जाना जाता है, तो वहीं झालावाड़ का ऐतिहासिक गागरोन जलदुर्ग वर्ल्ड हेरिटेज की सूची में भी शामिल है| सीधी -खड़ी चट्टान पर बिना नींव के बरसों से खड़ा यह गागरोन का किला जहां एक "र रामानंद संप्रदाय के प्रमुख संत शिरोमणि पीपाजी के लिए विख्यात है तो वहीं इसी किले में सूफी संत हजरत हमीदुद्दीन चिश्ती उर्फ मिट्ठे महावली सरकार की दरगाह भी स्थित है, जहां देशभर के जायरीन अपनी मन्नत लेकर आते हैं. कालीसिंध नदी व आहू नदी से तीन "र से घिरे गागरोन किले का इतिहास अपनी समृद्व एतिहासिक विरासत को अपने मे समेटे है.
                     झालावाड़ की ऐतिहासिक भवानी नाट्यशाला देश के प्रसिद्ध नाट्यशाला"ं में से एक है| "पेरा श्रेणी की इस नाट्यशाला में पहला नाटक अभिज्ञान शकुंतलम खेला गया था, तो वहीं उसके बाद देश के ख्यातनाम कलाकारों ने इस नाट्यशाला में अपनी प्रस्तुतियां दी हैं| झालावाड़ का तिकोना घंटाघर भी अपनी शैली का एक अनूठा स्थापत्य का उदाहरण पेश करता है. झालावाड़ जिला कला व संस्कृति की दृष्टि से हाडोती क्षेत्र में विशिष्ट स्थान रखता है. इस जिले में संगीत नृत्य व अन्य कला की समृद्ध परंपरा रही है जो आज भी निरंतरता बनाए हुए हैं|
                         विख्यात नर्तक उदयशंकर भट्ट, ख्याति प्राप्त सितार वादक रविशंकर, संगीतज्ञ सोहन सिंह, स्वर साधना के धनी नवल किशोर पारंपरिक चित्र शैली के अनूठे कलाकार घासीराम "र प्रेमचंद, कवि रघुराज सिंह हाडा आदि इस धरती की संस्कृति के वाहक रहे हैं, तो वहीं फिल्मी सितारों में अन्नू कपूर ने पूरे देश में अपनी अभिनय की छाप छोड़ी है| झालावाड़ शहर के गढ़ पैलेस में सैकड़ों श्रृंखलाबद्ध चित्रों एवं चित्रकारी से इस क्षेत्र की समृद्ध कला एवं संस्कृति का उदाहरण देखने को मिलता है तो वहीं जिले की लोक संस्कृति पर आधुनिकता का तुलनात्मक रूप से अभी तक बहुत कम प्रभाव पड़ा है|
                            बिंदोरी यहां का प्रमुख लोक नृत्य है. यह एक गैर शैली नृत्य है, "र सामान्यत: होली या विवाह उत्सव के समय किया जाता है| खानपान में झालरापाटन की फीणी व दाल बाफले व झालावाड की कचौरी का स्वाद पूरे विश्व में प्रसिद्ध है| पूरे देश की पहली नगर पालिका होने का गौरव झालरापाटन की नगर पालिका को प्राप्त है तो वहीं जिले के झालरापाटन शहर को "सिटी 'फ़ बैल्स" का नाम भी अंग्रेज इतिहासकार कर्नल टॉड ने दिया है| झालरापाटन का सूर्य मंदिर देश में कोणार्क के बाद दूसरा प्रसिद्ध सूर्य मंदिर है, तो वहीं डग क्षेत्र की बौद्ध कालीन कोलवी की गुफाएं भी सैलानियों को अपनी "र साल भर आकर्षित करती रहती है|
                               जिले में कालीसिंध, आहू, परवन व चंद्रभागा जैसी पवित्र नदियां भी बहती है| झालरापाटन की पवित्र चंद्रभागा नदी को हाड़ौती की गंगा भी माना जाता है| इसी पवित्र नदी के तट पर कार्तिक पूर्णिमा पर दीपदान व पवित्र स्नान होता है, जिसमें हजारों लोग भाग लेते हैं तो वहीं कृषि के क्षेत्र में जिला जैविक खेती व संतरा उत्पादन मे भी अपना नाम कमा चुका है|झालावाड़ जिले में संतरे की बंपर पैदावार होती है यहां का संतरा देश के विभिन्न राज्यों के साथ-साथ विदेशों में बांग्लादेश श्रीलंका सहित कई देशों में भी निर्यात होता है, तो वही झालावाड़ जिले में निकलने वाला सेंड स्टोन भी यूरोपियन देशों में अपनी छटा बिखेर रहा है|