यह छोटा-सा देवली नगर सन 1854 ई. में अंग्रेजों द्वारा बसाया गया था। निकटवर्ती देवली गाँव पहले से ही बसा हुआ था-वहाँ छोटे -छोटे देव - प्रतिक बडी संख्या में थे, इसलिए गाँव का नाम ही देवरों से देवली पड गया।यहा की नयनाभिराम झील "नेकचाल" अंग्रेजो ने अकाल राहत कार्य के तहत बनवाई थी - लोगों की निगाह में यह अंग्रेजो का नेक कार्य था (नेक चाल थी) इस कारण इस झील का नाम नेकचाल पड गया। अंग्रेजो ने मात्र 368 रूपयो में जमीन खरीद कर देवली छावनी बसाई थी। देवली छावनी की स्थापना के पीछे एक रोचक सच्चाई है-राजस्थान की देशी रियासतों (अधिकतर) ने ब्रिटिश शासन की अधीनता मान ली थी लेकिन अंग्रेज अधिकारियों को उन पर विश्वास नहीं था। इसलिए उन्होने नियम लागू किया कि प्रत्येक रियासत का एक वकील ��"र रोकडिया देवली छावनी में अंग्रेज एजेन्ट के संरक्षण में रहेगा। अत: यहाँ उनके लिए समस्त सुख - सुविधाएँ थी किन्तु वे एक तरह से ब्रिटिश सरकार के नजरबन्द थे। यहाँ के सीनियर सैकेण्डरी स्कूल का भवन,तत्कालीन पालिटिकल एजेण्ट का बंगला था इसमें स्वीमिंग पुल भी अलग था। ऐसे ही विख्यात नेवर बाग भी अंग्रेज एजेन्ट ने विकसित किया ��"र यहा भी तरणताल बनवाया जिसे अब पाट दिया गया है।जहाँ सी.आई.एस.एफ. संस्थान है, वहा मूलत: जेल थी। यहाँ भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के कैदियों को रखा जाता था। ब्रिटिश काल में ही यहाँ चर्च स्थापित किया गया। यह लगभग सवा सौ वर्ष पुराना बताया जाता है।देवली के चारों तरफ प्राचीन एवं मध्यकालिन तीर्थ धाम है। बोरडा गणेश, कुंचलवाडा-माता, चाँदली माता, गोकर्णेष्वर महादेव, रावता के हनुमान जी, गाडोली महादेव , लकडेश्वर महादेव, हिण्डेश्वर महादेव आदि। इनमें हिण्डोली के हिण्डेश्वर महादेव के साथ यह कथा जुडी हुई है कि वनवास काल में पांडवों ने केवल पाँच मुटृठी (धोबे) मिटृटी से इसका निर्माण किया। ऐसी भी लोककथा है कि निकटवर्ती बीसलपुर में दशानन रावण ने शिवोपासना की थी।