HISTORY

हमारे संस्‍थापक प्रधानाचार्य 

सामवेदाचार्य पण्डित ब्रह्यानंद गोस्‍वामी जी 

''जिनके कारण राजस्‍थान संगीत संस्‍थान अस्तित्‍व में आया''

 

30 दिसम्‍बर 1950 का दिन नवगठित राजस्‍थान राज्‍य के सांस्‍कृतिक इतिहास में स्‍वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा । उस दिन भारत के प्रसिद्ध एवं उच्‍चतम शिक्षा स्‍तर के राजस्‍थान के एक मात्र राजकीय ''राजस्‍थान कला संस्‍थान'' जो आज ''राजस्‍थान संगीत संस्‍थान'' के नाम से विख्‍यात है – का उद्भव हुआ था ।

 

स्‍वतन्‍त्रता पूर्व एवं पश्‍चात् सन् 1925 से सम्‍पूर्ण भारत में शास्‍त्रीय संगीत के अपने अद्भुत ज्ञान एवं अविस्‍मरणीय कार्यक्रमों से यश की पताका फहराने वाले महान संगीतज्ञ पं. ब्रह्यानंद गोस्‍वामी जी का जन्‍म 8 फरवरी सन् 1907 में हैदराबाद में हुआ था । अपने पिता पूज्‍य महंत श्री चैतन्‍यगिरी जी के कठोर अनुशासन में ग्‍वालियर घराने की ख्‍याल गायकी के कठिन अभ्‍यास ने मात्र 18 वर्ष की आयु के ब्रह्यानंद को पं. विष्‍णु दिगम्बर द्वारा प्रोफेसर �'फ म्‍यूजिक की उपाधि प्रदान करवाई । आगे चलकर उन्‍होने ग्‍वालियर घराने के सुप्रसिद्ध संगीतकार बाबा दीक्षित नीलकण्‍ठ, नाना साहिब फडके एवं अष्‍टेकर जी के शिष्‍यत्‍व में गायन विद्या में निपुणता प्राप्‍त की ।

 

भारत विभाजन के पश्‍चात् पण्डित जी कुछ समय के लिए जयपुर आये । सम्‍पूर्ण देश में उनके शिष्‍य थे जिनमें से कई बहुत बड़े व्‍यापारिक घराने के मालिक थे । उनके कुछ धनाढ्य शिष्‍यों ने मुम्‍बई में एक वृहत् योजना के अधीन जुह् बीच कर बडे संगीत कॉलेज की स्‍थापना हेतु आपसे प्रार्थना की तथा आपकी सहमति से कार्य आरम्‍भ हुआ ।

 

पण्डित जी का सन् 1930 से ही देश के अनेक राजा महाराजा�"  के निमन्‍त्रण पर कार्यक्रम होता रहा था । कई अखिल भारतीय सम्‍मेलनों में अपनी कला का लोहा मनवा चुके पण्डित जी को राजस्‍थान के प्रथम मुख्‍यमंत्री श्री हीरा लाल शास्‍त्री भली-भांति जानते थे । उनके मुम्‍बई जाने का समाचार मिलने पर शास्‍त्री जी गलता स्थित उनके निवास पर जाकर पण्डित जी से मिले ।

 

मुख्‍यमंत्री शास्‍त्री जी का कथन था ''दुर्भाग्‍य से देश का विभाजन हुआ परन्‍तु, सौभाग्‍य से राजस्‍थान को आप जैसा महान कलाकार मिला है । ये रेगिस्‍तान सूखा न रहे इसलिये आपसे हम यहां संगीत की धारा का प्रवाह जारी रखने का अनुरोध करते है । पण्डित जी को हिचकते देखकर मुख्‍यमंत्री शास्‍त्री जी ने उनके सामने राजकीय संगीत संस्‍थान की स्‍थापना का प्रस्‍ताव रख दिया । उनके आग्रह पर पण्डित जी ने इस संस्‍थान का प्रथम संस्‍थापक प्रधानाचार्य का पद स्‍वीकार किया । इस तरह राजकीय राजस्‍थान कला संस्‍थान का जन्‍म हुआ ।

 

अन्‍य रियासतों की तरह जयपुर की रियासत का भी भारत में विलीनीकरण हो चुका था । महाराजा जयपुर के गुणीजन खाने के अनेक प्रमुख संगीतज्ञ, कत्‍थक, नर्तक एवं वाद्य वादक बेरोजगार हो चुके थे । उनमें से कुछ विशेष प्रवीण कलाकारों को साथ लेकर गोस्‍वामी जी ने इस संस्‍थान को प्रारम्‍भ किया ।

 

कई वर्षों तक राजस्‍थान कला संस्‍थान दो भागों का संयुक्‍त उपक्रम रहा । सुबह ड्रांइग पेंन्टिग, क्‍ले मॉडलिंग की कक्षायें लगती थी । जिनमें प्रसिद्ध चित्रकार श्री राम गोपाल विजयवर्गीय जैसे fविद्वान भी शामिल थे । शाम को संगीत को तीनों विधा�" गायन, वादन एवं नृत्‍य की कक्षायें चलती थी । पण्डित ब्रह्यानन्‍द गोस्‍वामी इस राजकीय राजस्‍थान कला संस्‍थान के प्रथम एवं संस्‍थापक प्रधानाचार्य बने ।

 

उनके अथक परिश्रम एवं प्रयासों से यह देश के अत्‍यन्‍त अधिक सम्‍मानित संगीत कॉलेजों की श्रेणी का संस्‍थान बन गया । पण्डित जी ने स्‍कूल स्‍तर से लेकर कॉलेज एवं स्‍नातकोत्‍तर शिक्षण के लिए पाठ्यक्रम तैयार करवाए एवं विश्‍वविद्यालय में संगीत विषय का समावेश करवाया ।

 

पण्डित ब्रह्यानंद गोस्‍वामी सन् 1940 से आकाशवाणी के ए. क्‍लास आर्टिस्‍ट थे । कई विश्‍वविद्यालयों के पी.एच.डी. परीक्षक रहे, गोस्‍वामी जी एक आध्‍यात्‍मिक गुरू भी थे। उन्‍हें रामायण कंठस्‍थ थी तथा श्रीमद्भग्वत् गीता को सुरों में बांध कर नई रचनाऐं बनाई । उन्‍हें लगभग ग्‍यारह भाषा�"  का ज्ञान था । निरन्‍तर कठिन अभ्‍यास द्वारा उनके अनेक शिष्‍य राजकीय स्‍कूल कॉलेजों में शिक्षक बने । अत्‍यन्‍त प्रभावशाली व्‍यक्तित्व वाले पण्डित जी गायन, वादन एवं नृत्‍य तीनों विधा�" की बहुत गहरी समझ रखने के अतिरिक्‍त अत्‍यन्‍त कुशल प्रशासक भी थे । वे ब्रह्यरंग नाम से संगीत रचना�" का निर्माण करते थे । उनके द्वारा संगीत क्षेत्र में कई पुस्‍तक लिखी गई, जिनमें संगीत चंद्रिका भाग– 1, 2 व 3 राजस्‍थान के शिक्षा विभाग में पाठ्यक्रम में सम्मिलित की ग्ई थी । आपने राग ब्रह्यकली का आविष्‍कार भी किया था । हाल ही में राजस्‍थान विश्‍वविद्यालय द्वारा एक रिसर्च स्‍कालर को ''उत्‍तर भारत के शास्‍त्रीय संगीत में प‍ं. ब्रह्यानंद गोस्‍वामी का योगदान'' विषय पर पी.एच.डी. की उपाधि प्रदान की गई है ।